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    वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण

    परिचय:

    भारत में वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण औद्योगिक सांख्यिकी का प्रमुख स्रोत है। यह संगठित विनिर्माण क्षेत्र में आने वाली गतिविधियों जैसे कि निर्माण प्रक्रियाएं, मरम्मत सेवाएं, गैस और जल आपूर्ति तथा शीत भंडारण आदि के विकास, संरचना और स्वरूप में हुए परिवर्तनों का वस्तुनिष्ठ एवं यथार्थवादी मूल्यांकन करने हेतु सांख्यिकीय जानकारी प्रदान करता है। औद्योगिक क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसके तीव्र एवं संतुलित आर्थिक विकास में अहम भूमिका होती है। इस परिप्रेक्ष्य में, एएसआई डेटा का नियमित रूप से संग्रहण और प्रकाशन अत्यंत आवश्यक है। यह सर्वेक्षण सांख्यिकी संग्रह अधिनियम, 1953 और इसके अंतर्गत 1959 में बनाए गए नियमों के अंतर्गत प्रतिवर्ष किया जाता है, जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर, जहां यह राज्य सांख्यिकी संग्रह अधिनियम, 1961 और उसके अंतर्गत 1964 में बनाए गए नियमों के अंतर्गत संचालित होता है।

    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

    देश के औद्योगिक क्षेत्र से संबंधित आंकड़ों के संग्रहण और संकलन के महत्व को समझते हुए, भारत सरकार ने 1930 के बाद महत्वपूर्ण उद्योगों से विस्तृत आंकड़े एकत्रित करने हेतु एक स्वैच्छिक योजना की शुरुआत की। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्ध प्रबंधन की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु प्रत्येक सरकारी विभाग ने अपने-अपने सांख्यिकीय अनुभाग बना लिए। 1942 में श्रम पर रॉयल कमीशन की सिफारिश पर औद्योगिक सांख्यिकी अधिनियम अस्तित्व में आया। इसके तहत 1945 में वाणिज्य मंत्रालय के अधीन औद्योगिक सांख्यिकी निदेशालय  की स्थापना की गई। डिस ने 1946 में निर्माण उद्योग जनगणना  की शुरुआत की।

    स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत सरकार ने 1951 में योजना आधारित अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए विभिन्न एजेंसियों द्वारा एकत्र किए जा रहे आंकड़ों के समन्वय हेतु कैबिनेट सचिवालय के अधीन केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन  की स्थापना की। इसके पश्चात, 1956 में औद्योगिक सांख्यिकी अधिनियम 1942 को निरस्त कर दिया गया और इसकी जगह एक अधिक व्यापक सांख्यिकी संग्रह अधिनियम 1953 लागू किया गया। इसके बाद 1959 में डिस को कैबिनेट सचिवालय के अधीन लाया गया और इसे केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन में औद्योगिक सांख्यिकी प्रभाग के रूप में संलग्न कर दिया गया।